निरखो अंग-अंग जिनवर के | Nirkho ang-ang jinvar ke

Nirkho ang-ang jinvar ke

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1. Bhakti

 

निरखो अंग-अंग जिनवर के | Nirkho ang-ang jinvar ke

 

निरखो अंग-अंग जिनवर के

 

निरखो अंग-अंग जिनवर के,

जिनसे झलके शान्ति अपार ।।टेक।।

चरण-कमल जिनवर कहें, घूमा सब संसार ।

पर क्षणभंगुर जगत में, निज आत्मतत्त्व ही सार ।।

यातें पद्मासन विराजे जिनवर, झलके शान्ति अपार ।।(1)

 

हस्त-युगल जिनवर कहें, पर का करता होय ।

ऐसी मिथ्या बुद्धि से ही, भ्रमण चतुरगति होय ।।

यातें पद्मासन विराजे जिनवर, झलके शान्ति अपार ।।(2)

 

लोचन द्वय जिनवर कहें, देखा सब संसार ।

पर दुःखमय गति चार में, ध्रुव आत्मतत्त्व ही सार ।।

यातें नाशादृष्टि विराजे जिनवर, झलके शान्ति अपार ।।(3)

 

अन्तर्मुख मुद्रा अहो, आत्मतत्त्व दरशाय ।

जिनदर्शन कर निजदर्शन पा, सत्गुरु वचन सुहाय ।।

यातें अन्तर्दृष्टि विराजे जिनवर, झलके शान्ति अपार ।।(4)

 

पं. अभय कुमार जी, देवलाली।

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