समाधि भावना-SAMADHI BHAVNA

 

समाधि भावना

 

दिन रात मेरे स्वामी, मैं भावना ये भाऊँ ।

देहान्त के समय में, तुमको न भूल जाऊँ ।।

शत्रु अगर कोई हो, सन्तुष्ट उनको कर दूँ।

समता का भाव धरकर, सबसे क्षमा कराऊँ ।।

त्यागूँ अहार पानी, औषध विचार अवसर ।

 टूटे नियम न कोई, दृढ़ता हृदय में लाऊँ ।।

 जागें नहीं कषायें, नहीं वेदना सतावें।

तुमसे ही लौ लगी हो, दुर्ध्यान को भगाऊँ ।।

आतम स्वरूप अथवा, आराधना विचारूँ ।

अरहंत सिद्ध साधु, रटना यही लगाऊँ ।।

धरमात्मा निकट हों, चरचा धरम सुनावें ।

 वह सावधान रक्खें, गाफिल न होने पाऊँ ।।

जीने की हो न बाँछा, मरने की हो न इच्छा।

परिवार मित्र जन से, मैं राग को हटाऊँ ।।

भोगे जो भोग पहिले, उनका न होवे सुमरन ।

 मैं राज्य संपदा या, पद इन्द्र का न चाहूँ ।।

रत्नत्रय का पालन, हो अन्त में समाधी ।

 शिवराम प्रार्थना है, जीवन सफल बनाऊँ ।।

दिन रात मेरे स्वामी, मैं भावना ये भाऊँ ।

देहान्त के समय में, तुमको न भूल जाऊँ।।

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