बाहुबलि पूजा | Bahubali Pooja

Bahubali Pooja

बाहुबलि पूजा

 

बाहुबलि पूजा

 

दोहा-कर्म अरिगण जीतिके, दरशायो शिव पंथ ।

 प्रथम सिद्ध पद जिन लयो, भोग भूमि के अंत ॥

 समर दृष्टि जल जीत लहि, मल्ल युद्ध जय पाय ।

 वीर अग्रणी बाहुबलि, बंदौ मन वच काय ॥

 ॐ ह्रीं श्रीबाहुबलिपरमयोगीन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् ।

 ॐ ह्रीं श्रीबाहुबलिपरमयोगीन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः ।

 ॐ ह्रीं श्रीबाहुबलिपरमयोगीन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् ।

अष्टक (जोगीरासा छन्द)

जन्म जरा मरनादि तृषा कर जगत जीव दुःख पावै ।

तिहि दुख दूर करन जिनपद को पूजन जल ले आवै ॥

परम पूज्य वीराधिवीर जिन बाहुबलि बल धारी ।

तिनके चरण कमलकौ नित प्रति धोक त्रिकाल हमारी ॥

 ॐ ह्रीं श्रीबाहुबलिपरमयोगीन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ।

 यह संसार मरुस्थल अटवी तृष्णा दाह भरी है ।

 तिहि दुख वारन चन्दन लेके जिन पद पूज करी है । 

परम पूज्य वीराधिवीर जिन बाहुबलि बल धारी ।

तिनके चरण कमलकौ नित प्रति धोक त्रिकाल हमारी ॥

ॐ ह्रीं श्रीबाहुबलिपरमयोगीन्द्राय भवातापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा । 

स्वच्छ शालि शुचि नीरज रजसम गन्ध अखण्ड प्रचारी ।

अक्षय पद के पावन कारन पूजै भवि जगतारी ॥ 

परम पूज्य वीराधिवीर जिन बाहुबलि बल धारी ।

तिनके चरण कमलकौ नित प्रति धोक त्रिकाल हमारी ॥

ॐ ह्रीं श्रीबाहुबलिपरमयोगीन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा । 

हरिहर चक्रपति सुर-दानव मानव पशु वश याकै ।

 तिहि मकरध्वज नाशक जिनकों पूजों पुष्प चढ़ाकै ॥ 

परम पूज्य वीराधिवीर जिन बाहुबलि बल धारी ।

तिनके चरण कमलकौ नित प्रति धोक त्रिकाल हमारी ॥

ॐ ह्रीं श्रीबाहुबलिपरमयोगीन्द्राय कामबाणविनाशनाय पुष्पाणि निर्वपामीति स्वाहा । 

 दुखद त्रिजग जीवन को अति ही दोष क्षुधा अनिवारी ।

 तिहि दुख दूर करन को चरुवर ले जिन पूज प्रचारी ॥

परम पूज्य वीराधिवीर जिन बाहुबलि बल धारी ।

तिनके चरण कमलकौ नित प्रति धोक त्रिकाल हमारी ॥

 ॐ ह्रीं श्रीबाहुबलिपरमयोगीन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।

मोह महातम में जग जीवन शिव मग नाहिं लखावै ।

तिहि निरवारण दीपक कर ले जिनपद पूजन आवै ॥ 

परम पूज्य वीराधिवीर जिन बाहुबलि बल धारी ।

तिनके चरण कमलकौ नित प्रति धोक त्रिकाल हमारी ॥

ॐ ह्रीं श्रीबाहुबलिपरमयोगीन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा । 

उत्तम धूप सुगन्ध बनाकर दश दिश में महकावै । 

दश विधि बंध निवारण कारण जिनवर पूज रचावै ॥ 

परम पूज्य वीराधिवीर जिन बाहुबलि बल धारी ।

तिनके चरण कमलकौ नित प्रति धोक त्रिकाल हमारी ॥

ॐ ह्रीं श्रीबाहुबलिपरमयोगीन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।

 

सरस सुवरण सुगन्ध अनूपम स्वच्छ महाशुचि लावै ।

शिव फल कारण जिनवर पद की फलसों पूज रचावै ॥

परम पूज्य वीराधिवीर जिन बाहुबलि बल धारी ।

तिनके चरण कमलकौ नित प्रति धोक त्रिकाल हमारी ॥

 ॐ ह्रीं श्रीबाहुबलिपरमयोगीन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।

वसु विधि के वश वसुधा सब ही परवश अति दुख पावै ।

तिहि दुख दूर करनको भविजन अर्घ्य जिनाग्र चढ़ावै ॥

परम पूज्य वीराधिवीर जिन बाहुबलि बल धारी ।

तिनके चरण कमलकौ नित प्रति धोक त्रिकाल हमारी ॥

 ॐ ह्रीं श्रीबाहुबलिपरमयोगीन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।

जयमाला

 दोहा

आठ कर्म हनि आठगुण, प्रगट करे जिन रूप ।

सो जयवंतो भुजबली, प्रथम भये शिव भूप ।।

कुसुमलता छन्द

जै जै जै जगतार शिरोमणि क्षत्रिय वंश अशंस महान । 

जै जै जै जग जन हितकारी दीनौ जिन उपदेश प्रमाण ||१||

 

 जै जै चक्रपति सुत जिनके शत सुत जेष्ठ भरत पहिचान । 

जै जै जै श्रीऋषभदेव जिनसौं जयवंत सदा जग जान ||२||

 जिनके द्वितीय महादेवी शुचि नाम सुनंदा गुण की खान । 

रूप शील सम्पन्न मनोहर तिनके सुत भुजबली महान ॥३॥

 सवा-पंच शत धनु उन्नत तनु हरितवरण शोभा असमान ।

 वैडूरजमणि पर्वत मानों नील कुलाचल सम थिर जान ||४||

 तेजवंत परमाणु जगतमें तिन करि रचो शरीर प्रमाण । 

शत वीरत्व गुणाकर जाको निरखत हरि हरषै उर आन ॥५॥

 धीरज अतुल वज्र सम नीरज सम वीराग्रणि अति बलवान । 

जिन छवि लखि मनु शशि छवि लाजै कुसुमायुध लीनों सुपुमान ॥६॥

 बाल समै जिन बाल चन्द्रमा शशि से अधिक धरे दुतिसार ।

 जो गुरुदेव पढ़ाई विद्या शस्त्र शास्त्र सब पढ़ी अपार ||७||

 ऋषभदेव ने पोदनपुर के नृप कीने भुजबली कुमार । 

दई अयोध्या भरतेश्वर को आप बने प्रभु जी अनगार ॥८॥

 राजकाज षटखण्ड महीपति सब दल लै चढ़ि आये आप । 

बाहुबलि भी सन्मुख आये मन्त्रिन तीन युद्ध दिये थाप ||९||

 दृष्टि नीर अरु मल्ल युद्ध में दोनों नृप कीनों बल धाप ।

 वृथा हानि की जाय सैन्य की यातें लड़िये आपों आप ॥१०॥

भरत भुजबली भूपति भाई उतरे समर भूमि में जाय ।

दृष्टि नीर रण थके चक्रपति मल्लयुद्ध तब करो अघाय ||११|| 

पगतल चलत-चलत अचला कंपत अचल शिखर ठहराय |

 निषेध नील अचलाधर मानौं भये चलाचल क्रोध बसाय ||१२||

 भुज विक्रमबल बाहुबली ने लिये चक्रपति अधर उठाय । 

चक्र चलायौ चक्रपति तब सो भी विफल भयो तिहि ठाह ||१३||

 अति प्रचण्ड भुजदण्ड सुण्ड सम नृप शार्दूल बाहुबली राय ।

 सिंहासन मंगवाय जासपै अग्रज को दीनौं पधराय ||१४|| 

राजरमा रामा सुरधनु में जीवन दमक दामिनी जान ।

 भोग भुजंग जंग सम जग को जान त्याग कीनों तिहि थान ||१५|| 

अष्टापद पर जाय वीरनृप वीर व्रती धर कीनों ध्यान । 

अचल अंग निरभंग संग तज संवतसर लों एक स्थान ||१६|| 

विषधर बंबी करी चरनतल ऊपर बेलि चढ़ी अनिवार ।

 युग जंघा कटि बाहु बेढ़ि कर पहुँची वक्षस्थल परसार ||१७|| 

सिरके केश बढ़े जिस माँहिं नभचर पक्षी बसे अपार । 

धन्य धन्य इस अचल ध्यान की महिमा सुर गावैं उर धार ॥१८॥

 कर्म नाशि शिव जाय बसे प्रभु ऋषभेश्वर से पहले जान ।

 अष्ट गुणांकित सिद्ध शिरोमणि जगदीश्वर पद लाय पुमान ॥ १९॥

 वीर व्रती वीराग्रगन्य प्रभु बाहुबली जग धनय महान ।

वीरवृत्ति के काज जिनेश्वर नमैं सदा जिन बिम्ब प्रमान ||२०||

 दोहा

श्रवणबेलगुल विन्ध्यगिरि, जिनवर बिंब प्रधान ।

 छप्पन फुट उत्तंगतनों, खडगासन अमलान ॥

अतिशयवन्त अनन्त बल धारक विम्ब अनूप |

अर्घ्य चढाय नमो सदा, जै जै जिनवर भूप ॥

 ॐ ह्रीं कर्मारिविजयिवीराधिवीर-वीराग्रणी- श्रीबाहुबलिस्वामिने 

अनर्घ्यपदप्राप्तये महार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा । 

 

पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत्

 

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