विद्यमान बीस तीर्थंकर पूजा
Vidhyamaan 20 Tirthankar pooja
विद्यमान 20 तीर्थंकर पूजा
पं. द्यानतराय
दोहा-दीप अढ़ाई मेरु पन, ‘अब तीर्थंकर बीस ।
तिन सबकी पूजा करूँ, मन वच तन धरि शीस ॥
ॐ ह्रीं श्रीविद्यमानविंशतितीर्थंकराः ! अत्र अवतरत अवतरत संवौषट् ।
ॐ ह्रीं श्रीविद्यमानविंशतितीर्थंकराः ! अत्र तिष्ठत तिष्ठत ठः ठः ।
ॐ ह्रींश्रीविद्यमानविंशतितीर्थंकराः ! अत्र मम सन्निहिता भवत भवत वषट्
अष्टक (रोला)
इन्द्र फणीन्द्र नरेन्द्र वंद्य पद निर्मल धारी ।
शोभनीक संसार सार गुण हैं अविकारी ॥
दोहा
क्षीरोदधि सम नीर सौं पूजों तृषा निवार ।
सीमंधर जिन आदि दे बीस विदेह मँझार ॥
(श्री जिनराज हो भव तारण तरण जिहाज ॥ )
ॐ ह्रीं श्रीविद्यमानविंशतितीर्थंकरेभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति ।
तीन लोक के जीव पाप-आताप सताये ।
तिनको साता दाता शीतल वचन सुहाये ॥
बावन चन्दन सौं जजूँ भ्रमन तपन निरवार ।
सीमंधर जिन आदि दे बीस विदेह मँझार ॥
ॐ ह्रीं श्रीविद्यमानविंशतितीर्थंकरेभ्यो भवातापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति ।
यह संसार अपार महासागर जिन स्वामी ।
तातैं तारे बड़ी भक्ति नौका जग नामी ॥
तंदुल अमल सुगंध सौं पूजों तुम गुणसार ।
सीमंधर जिन आदि दे बीस विदेह मँझार ॥
ॐ ह्रीं श्रीविद्यमानविंशतितीर्थंकरेभ्योऽक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति ।
भविक सरोज विकाश निंद्यतमहर रवि से हो ।
जति श्रावक आचार कथन को तुम ही बड़े हो ॥
फूल सुवास अनेक सौं पूजों मदनप्रहार।
सीमंधर जिन आदि दे बीस विदेह मँझार ॥
ॐ ह्रीं श्रीविद्यमानविंशतितीर्थंकरेभ्यः कामबाणविध्वंसनाय पुष्पाणि निर्वपामीति ।
काम नाग विषधाम नाश को गरुड़ कहे हो ।
क्षुधा महादव ज्वाल तास को मेघ लहे हो ।
नेवज बहुघृत मिष्ट सौं पूजों भूखविडार ।
सीमंधर जिन आदि दे बीस विदेह मँझार ॥
ॐ ह्रीं श्रीविद्यमानविंशतितीर्थंकरेभ्यः क्षुधारोगविनाशाय नैवेद्यं निर्वपामीति ।
उद्यम होन न देत सर्व जग मांहिं भर्यो है ।
मोह महातम घोर नाश परकाश कर्यो है ॥
पूजों दीप प्रकाश सौं ज्ञानज्योति करतार ।
सीमंधर जिन आदि दे बीस विदेह मँझार ॥
ॐ ह्रीं श्रीविद्यमानविंशतितीर्थंकरेभ्यो मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति ।
कर्म आठ सब काठ भार विस्तार निहारा ।
ध्यान अगनि कर प्रगट सरब कीनो निरवारा ॥
धूप अनूपम खेवतें दुःख जलै निरधार ।
सीमंधर जिन आदि दे बीस विदेह मँझार ॥
ॐ ह्रीं श्रीविद्यमानविंशतितीर्थकरेभ्योऽष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।
मिथ्यावादी दुष्ट “लोभहंकार भरे हैं ।
सबको छिन में जीत जैन के मेरु खड़े हैं ।
फल अति उत्तम सौं जजों वांछित फल दातार ।
सीमंधर जिन आदि दे बीस विदेह मँझार ॥
ॐ ह्रीं श्रीविद्यमानविंशतितीर्थंकरेभ्यो मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा ।
जल फल आठों दर्व अरघ कर प्रीति धरी है ।
गणधर इन्द्रनिहूं तैं थुति पूरी न करी है ॥
‘द्यानत’ सेवक जानके जग तैं लेहु निकार ।
सीमंधर जिन आदि दे बीस विदेह मँझार ॥
ॐ ह्रीं श्रीविद्यमानविंशतितीर्थंकरेभ्यो ऽनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
जयमाला
सोरठा
ज्ञान सुधाकर चन्द, भविक खेत हित मेघ हो।
भ्रम-तम-भान अमन्द तीर्थकर बीसों नमों ॥
चौपाई
सीमंधर सीमंधर स्वामी, जुगमन्धर जुगमन्धर नामी ।
बाहु बाहु जिन जगजन तारे, करम सुबाहु बाहुबल दारे ||१||
जात सुजातं केवलज्ञानं, स्वयंप्रभु प्रभु स्वयं प्रधानं ।
ऋषभानन ऋषिभानन दोषं, अनन्तवीरज वीरज कोषं ||२||
सौरीप्रभ सौरी गुणमालं, सुगुण विशाल विशाल दयालं ।
वज्रधार भवगिरि वज्जर हैं, चन्द्रानन चन्द्रानन वर हैं ||३||
भद्रबाहु भद्रनि के करता, श्रीभुजंग भुजंगम हरता ।
ईश्वर सबके ईश्वर छाजैं, नेमि प्रभु जस नेमि विराजैं ||४||
वीरसेन वीरं जग जानै, महाभद्र महाभद्र बखानै ।
नमों जसोधर जसधर कारी, नमो अजित वीरज बलधारी ||५||
धनुष पाँचसै काय विराजें, आयु कोडि पूरव सब छाजें ।
समवसरण शोभित जिनराजा, भवजल तारनतरन जिहाजा ||६||
सम्यक् रत्नत्रय निधि दानी, लोकालोक प्रकाशक ज्ञानी ।
शतइन्द्रनि कर वंदित सोहैं, सुर नर पशु सबके मन मोहें ||७||
ॐ ह्रीं श्रीसीमन्धरादिविद्यमानविंशतितीर्थंकरेभ्यो महार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
दोहा
तुमको पूजें वंदना, करैं धन्य नर सोय ।
‘द्यानत’ सरधा मन धरै, सो भी धर्मी होय ॥
इत्याशीर्वादः
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कृत्रिमाकृत्रिम जिनबिम्बार्ध
कृत्याकृत्रिमचारुचैत्यनिलयान् नित्यं त्रिलोकीगतान्,
‘वन्दे भावन-व्यन्तरान् द्युतिवरान् कल्पामरावासगान् ॥
सद्-गन्धाक्षत-पुष्पदामचरुकैः सद्दीपधूपैःफलै-
र्निराद्यैश्च यजे प्रणम्य शिरसा, दुष्कर्मणां शान्तये ॥
(सात करोड़ बहत्तर लाख, सु-भवन जिन पाताल में ।
मध्यलोक में चारसौ अट्ठावन. जजों अघमल टाल के ॥
अब लख चौरासी सहस सत्याणव, अधिक तेईस रु कहे ।
बिन संख ज्योतिष व्यन्तरालय, सब जजों मन वच ठहे ॥)
ॐ ह्रीं कृत्रिमाकृत्रिमजिनबिम्बेभ्योऽर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
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