Prabhu patit pawan / प्रभु पतित पावन

प्रभु पतित पावन मैं अपावन, चरन आयो सरन जी।

 1.Bhakti

देव स्तुति

 

प्रभु पतित पावन मैं अपावन, चरन आयो सरन जी।

 यो विरद आप निहार स्वामी, मेट जामन मरन जी ।।

 

तुम ना पिछान्यो आन मान्यो, देव विविध प्रकार जी ।

या बुद्धि सेती निज न जान्यो, भ्रम गिण्यो हितकार जी ।।

 

भव विकट वन में कर्म बैरी, ज्ञानधन मेरो हर्यो ।

सब इष्ट भूल्यो भ्रष्ट होय, अनिष्ट गति धरतो फिर्यो ।।

 

धन घड़ी यों धन दिवस यो, धन्य जनम मेरो भयो ।

अब भाग्य मेरो उदय आयो, दरश प्रभुजी को लख लयो ।।

 

 छबि वीतरागी नग्न मुद्रा, दृष्टि नासा पै धरैं ।

वसु प्रातिहार्य अनन्त गुण जुत, कोटि रवि छवि को हरें ।।

 

मिट गयो तिमिर मिथ्यात्म मेरो, उदय रवि आतम भयो ।

मो उर हर्ष ऐसो भयो, मनु रंक चिन्तामणि लयो । ।

 

दोउ हाथ जोड़ नवाऊं मस्तक, वीनऊँ तुम चरण जी ।

सर्वोत्कृष्ट त्रिलोकपति जिन, सुनहु तारण तरण जी । ।

 

जाँचूं नहीं सुरवास पुनि, नर-राज परिजन साथ जी।

‘बुध’ जाँचहूं तुम भक्ति भव-भव, दीजिये शिवनाथ जी ।।

 

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